सुब्रता पॉल 33 की उम्र में खेलने के लिए खुद को कैसे मोटिवेट करते हैं ?
इंडियन गोलकीपर ने नेशनल टीम के लिए भी कई मैच खेले हैं।
इंडियन फुटबॉल में गोलकीपर सुब्रता पॉल उन खिलाड़ियों में शामिल हैं जिन्होंने इस खेल को सालों दिए हैं और उन्हें दिग्गज खिलाड़ियों की लिस्ट में शामिल किया जाता है। उनका मानना है कि उनके अंदर अभी भी काफी खेल बचा है और वह खेलना जारी रखेंगे। वह 42 साल के इटेलियन दिग्गज जियानलुइगी बुफोन को अपना आयडल मानते हैं और आने वाले सालों में खुद को राष्ट्रीय टीम के लिए खेलते हुए देखना चाहते हैं।
सुब्रता पॉल को भरोसा है कि वह अपने नियमित प्रदर्शन से राष्ट्रीय टीम के कोच इगोर स्टीमाक को प्रभावित करने में कामयाब रहेंगे। उन्होंने कहा, "मैंने 12 सालों से अपने देश की सेवा की है और मुझे लगता है कि मैं अभी भी अपने देश के लिए काफी कुछ दे सकता हूं। अगर बुफोन इस उम्र में खेल सकते हैं तो मैं भी खेल सकता हूं। मेरे पास समय है और मुझे खुद पर विश्वास है कि मैं ऐसा कर सकता हूं। मैं यही सोचकर खुद को मोटिवेट करता हूं और जिस दिन मुझे ऐसा लगेगा कि मैं अब अपने देश के लिए और कुछ नहीं कर सकता उस दिन मैं अपना बैग पैक करूंगा और रिटायरमेंट ले लूंगा।"
इंडियन गोलकीपर को अपने करियर की शुरुआत में ही एक ऐसी घटना का सामना करना पड़ा था जिसने उसे अंदर से हिला दिया था और वह डिप्रेशन में चले गए थे। साल 2004 में हुए फेडरेशन कप के फाइनल में मोहन बागान की ओर से खेलते हुए वह अनजाने में एक खिलाड़ी की मौत का कारण बन गए थे। मैच के दौरान उनकी ब्राजीलियन खिलाड़ी क्रिस्टियानो जूनियर से टक्कर हो गई थी जो काफी गंभीर तौर पर चोटिल हो गए।
जूनियर को अस्पताल ले जाया गया और फिर मृत घोषित कर दिया गया। इसके बाद, सुब्रता पॉल डिप्रेशन में चले गए थे। ऐसे समय में उन्हें दोस्तों और परिवार का साथ मिला। वह विवेकानंद की किताबें पढ़ते थे और धीरे-धीरे बाहर निकल आए। उनके मुताबिक इस समय ने उन्हें बताया कि कौन वाकई में उनका दोस्त है और कौन केवल मतलब के लिए उनके साथ था।
अपने करियर में उन्होंने देश के लिए अहम मौकों पर शानदार सेव करते हुए टीम को मुश्किल से उभारा है जिसमें 2011 का एएफसी एशियन कप सबसे खास है।इस टूर्नामेंट में साउथ कोरिया के खिलाफ उन्होंने शानदार खेल दिखाया था। उनकी शानदार गोलकीपर स्किल के लिए उन्हें 'स्पाइडरमैन' निकनेम दिया गया था।
सुब्रता पॉल ने उस टूर्नामेंट को याद करते हुए कहा, "मुझे लगता है कि वह टाइटल सिर्फ मेरे लिए नहीं था। मेरे लिए वह बेहद खास था और पूरी टीम की कोशिशों का नतीजा था। हमने हर मैच में जी जान लगा दी थी। 2011 एशियन कप में हमें काफी मुश्किल ग्रुप मिला था जिसमें ऑस्ट्रेलिया, साउथ कोरिया और बाहरेन जैसी टीमें थी। वह वाकई में ग्रुप ऑफ डेथ था। हमने तीनों मैच खेले और अंतरराष्ट्रीय मीडिया ने मुझे स्पाइडरमैन कहा था।
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