क्यों भारत में फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम बनाने की सख्त जरूरत है ?
अगर इंडिया को दुनिया में अपनी पहचान बनानी है तो फिर इस तरह के स्टेडियम का होना जरूरी है।
भारत एक बहुत बड़ा देश है और यहां की जनसंख्या भी काफी ज्यादा है। यही वजह है कि यहां पर फुटबॉल देखने और उसे खेलने वाले लोगों की संख्या भी काफी ज्यादा है। हालांकि इतने ज्यादा टैलेंटेड प्लेयर्स होने के बावजूद वर्ल्ड फुटबॉल में इंडिया काफी पीछे है। इस खेल में देश के पीछे होने के कई अहम कारण हैं। इसमें इंफ्रास्ट्रक्चर से लेकर स्टेडियम तक का उपलब्ध ना होना शामिल है।
एक्सपर्ट्स का मानना है कि अगर इंडिया को वर्ल्ड फुटबॉल में आगे बढ़ना है तो उन्हें अपने इंफ्रास्ट्रक्चर पर खासा ध्यान देना होगा। सबसे अहम चीज है केवल फुटबॉल को ही फोकस करके बनाया गया स्टेडियम। इस वक्त भारत को ऐसे स्टेडियम की सख्त जरूरत है जहां पर केवल फुटबॉल के ही मैचों का आयोजन हो।
भारत में ऐसे स्टेडियम की काफी कमी है जो केवल फुटबॉल सेंट्रिक हैं। इससे फुटबॉल को उस तरह का प्रमोशन नहीं मिल पाता है और युवा प्लेयर भी सही तरह से डेवलप नहीं हो पाते हैं।
फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम होने के फायदे
फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम होने से गेम को प्रमोट करने में काफी मदद मिलती है। इसकी वजह से फैंस काफी करीब से टीम से जुड़ जाते हैं और प्लेयर्स के बारे में वो पूरी डिटेल्स जान सकते हैं। अगर कोई फैन किसी मैच को काफी करीब से ऑब्जर्व करता है तो फिर वो टीम की रणनीति, फॉर्मेशन और प्लानिंग के बारे में समझ सकता है।
फैंस के स्टेडियम में होने से प्लेयर्स का भी हौंसला बढ़ता है। फैंस के शोर-शराबे से खिलाड़ी काफी मोटिवेट होते हैं और इससे उन्हें बेहतर परफॉर्म करने में मदद मिलती है। सपोर्ट्स भी अपने नारों और गानों से टीम का हौंसला बढ़ाते हैं।
अगर किसी यंग प्लेयर्स को शुरुआत से ही डेवलप करना है तो उसके लिए बेहतरीन पिच का होना काफी जरूरी है। फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम में इस तरह की कई सारी सुविधाएं होती हैं जिससे युवा खिलाड़ियों को कम उम्र से ही काफी कुछ सीखने का मौका मिलता है।
फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम ना होने के नुकसान
फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम के ना होने से गेम को कई लेवल पर नुकसान होता है। अगर एक ही स्टेडियम में कई तरह के मैचों का आयोजन हो रहा है तो फिर सबसे ज्यादा दिक्कत शेड्यूलिंग में आती है। इसके अलावा दूसरे स्पोर्ट्स के लिए पिच का प्रयोग होने से उसकी क्वालिटी कम हो जाती है। घास को पूरी तरह से उगने का समय ही नहीं मिलता है। इसी वजह से मैदान पूरी तरह से बराबर नहीं रहता है और फुटबॉल मैच के दौरान प्लेयर्स को दिक्कतों का सामना करना पड़ता है।
अगर स्टेडियम में रनिंग ट्रैक भी है तो फिर इससे फैंस को नजदीक से गेम देखने का मौका नहीं मिलता है। इसका सबसे बड़ा नुकसान ये है कि फैंस इसकी वजह से स्टेडियम में नहीं आते हैं और फिर मैदान पूरी तरह से भरा नहीं रहता है। इससे लोग फुटबॉल को उतना ज्यादा सीरियस लेते नहीं हैं और ना ही कोई खेलने के लिए प्रेरित होता है। क्योंकि अगर आप स्टेडियम जाकर मैच देखते हैं तो वहां का माहौल ही अलग होता है और फिर उसके बाद आप खेलने के लिए भी प्रेरित होते हैं और यहीं से खिलाड़ी निकलते हैं और बनते हैं।
भारत के पास इतनी जगह है कि वो फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम का निर्माण कर सकें। इस तरह के स्टेडियम नहीं होने से इस वक्त युवा खिलाड़ियों को काफी नुकसान हो रहा है।
फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम पर जोर देने की जरूरत
फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम में आप बहुत कम उम्र से ही किसी भी प्लेयर को डेवलप कर सकते हैं। अगर किसी युवा खिलाड़ी को बेहतरीन पिच पर खेलने का मौका मिलता है तो उससे उसका कॉन्फिडेंस लेवल काफी बढ़ जाता है और उसके चोटिल होने की संभावना भी काफी कम रहती है। ऐसे स्टेडियम से आप उस कल्चर को बढ़ावा दे सकते हैं और गेम को प्रमोट कर सकते हैं।
अगर भारत में केवल फुटबॉल के लिए ही तैयार किए गए स्टेडियम हों तो फिर फैंस यहां पर आकर अपनी टीम को सपोर्ट कर सकते हैं। भारत में पॉपुलेशन ज्यादा होने से लोग भी ज्यादा आएंगे और इससे गेम की लोकप्रियता काफी ज्यादा बढ़ जाएगी और वर्ल्ड में भी चर्चा होगी। इन स्टेडियम के जरिए लोकल लीग्स का आयोजन करके छिपे हुए टैलेंट को तराशा जा सकता है।
भारत में अगर इस वक्त फुटबॉल सेंट्रिक स्टेडियम की बात करें तो डॉक्टर अम्बेडकर स्टेडियम (नई दिल्ली), अहमदाबाद का ईकेए एरिना, मुंबई का मुंबई फुटबॉल एरिना जैसे नाम ही केवल हैं। इससे साफ पता चलता है कि इंडिया को इस तरह स्टेडियम की कितनी सख्त जरूरत है।
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