साधारण खिलाड़ी से कबड्डी का बेताज बादशाह बनने तक; जानिए परदीप नरवाल की कहानी

परदीप नरवाल का नाम कबड्डी के फैंस के बीच काफी प्रसिद्ध है।
परदीप नरवाल का नाम न सिर्फ प्रो कबड्डी लीग (PKL) के इतिहास के पन्नों में दर्ज है, बल्कि यह नाम इस खेल की आत्मा में बसती है। सोनीपत के एक छोटे से गांव का लड़का, जो एक समय अपने परिवार की खेती में मदद करता था, उसने पूरे लीग की जिम्मेदारी अपने कन्धों पर उठा ली थी।
प्रो कबड्डी लीग के लगभग सभी रिकॉर्ड अपने नाम करने के बाद भी परदीप नरवाल का स्वभाव वैसा ही रहा, जैसा उनका स्वभाव तब था जब वो पहली बार मैट पर उतरे थे (दिल से किसान और साथ में कबड्डी के योद्धा)।
‘डुबकी किंग’ के नाम से मशहूर परदीप नरवाल ने कुछ ही दिन पहले कबड्डी से संन्यास लेकर सभी को चौंका दिया था और उनके फैंस काफी दुखी हो गए थे। PKL सीजन 12 के ऑक्शन में अनसोल्ड रहने के बाद अगले ही दिन परदीप ने संन्यास की घोषणा की थी, जिसकी उम्मीद किसी ने नहीं की थी।
यही शायद परदीप की खासियत थी, ना उन्होंने किसी की शिकायत की, ना ही बड़े स्तर पर विदाई ली। एक लाइव सेशन के दौरान उन्होंने बड़े ही आराम से संन्यास की घोषणा कर दी और फैंस को यह भी जानकारी दी कि वह कोच और मेंटर के तौर पर कबड्डी से जुड़े रहेंगे।
अपने डेब्यू सीजन में सिर्फ़ 9 पॉइंट लेने वाले परदीप ने एक सीजन में 369 पॉइंट लेकर एक चौंकाने वाला रिकॉर्ड बनाया था, जिससे यह पता चलता है कि परदीप किस जबरदस्त प्रतिभा के धनी थे।
प्रो कबड्डी लीग में 1810 रेड पॉइंट, 88 सुपर 10 और पटना पाइरेट्स को तीन बार खिताब दिलाने वाले परदीप कभी स्पॉटलाइट की तरफ नहीं भागे। उनकी ‘डुबकी’ इतनी जबरदस्त थी जिसमें डिफेंडर को कुछ अता-पता नहीं चलता था और फैंस एकदम स्तब्ध हो जाते थे।
इतने जबरदस्त रिकॉर्ड के बावजूद, परदीप नरवाल काफी साधारण तरीके से रहते थे जो उनकी सबसे बड़ी खूबी थी। वह कभी प्रसिद्धि और ग्लैमर की तरफ भागते नहीं दिखे। जहां एक तरफ दूसरों ने ब्रांड बनाया, परदीप ने यादें बनाई। वह कभी ज्यादा बोलते भी नहीं दिखे और अपने प्रदर्शन से ही वह सबको शांत कर देते थे। उनके अंदर रेड करने की, डाइव करने की और डुबकी लगाने की एक अलग ही भूख थी।
मैट के बाहर वह वही गाँव के लड़के रहे जो काफी शांत और शर्मीले थे और जब कबड्डी से फ्री रहते थे तो वह अपने परिवार की खेती में मदद भी करते थे। अपने दौर के सबसे बड़े कबड्डी खिलाड़ी होने के बावजूद, परदीप ने सफलता को अपने सिर पर कभी चढ़ने नहीं दिया। उन्होंने अपने प्रदर्शन से ही हमेशा सबको जवाब दिया।
अब जब वह खेल से दूर जा रहे हैं, कबड्डी अपने किंग के बिना वैसा नहीं रहेगा जैसा उनके रहते हुआ करता था। लेकिन लीजेंड कभी रिटायर नहीं होते और दर्शकों के बीच वह हमेशा मौजूद रहते हैं। हर उस रेडर में उनकी झलक दिखती है जिनके दिमाग में डुबकी रहता है और हर उस मैच की चर्चा में रहते हैं जिसको उन्होंने अपने दम पर यादगार बना दिया।
धन्यवाद परदीप नरवाल, उन लम्हों के लिए, उन यादगार प्रदर्शनों के लिए, अपनी रेडों के लिए और सबसे बड़ी बात जैसे आप थे, वैसा रहने के लिए।
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