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सुमित राठी : कोच एंटोनियो लोपेज हबास मेरे लिए भगवान की तरह हैं

Published at :November 13, 2020 at 7:55 PM
Modified at :November 13, 2020 at 7:55 PM
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Rahul Gupta


यंगस्टर ने बताया कि वो एटीके के कोच की तस्वीर अपने फ्लैट में रखते हैं।

एटीके मोहन बगान के युवा डिफेंडर सुमित राठी ने अपने शानदार खेल से पिछले साल टीम को चैंपियन बनाने में अहम भूमिका अदा की थी। जब वो कहते हैं कि उनके बचपन के कोच रोहिन कुमार उनके आदर्श हैं या उनकी फैमिली के लिए उन्हें ट्रैक्टर से खेतों की जुताई करनी पड़ती है, तब एक अलग तरह का भाव उनके चेहरे पर देखने को मिलता है।

कुछ ही प्लेयर ऐसे होते हैं जो उत्तर प्रदेश से आकर अपने देश या क्लब के लिए खेल पाते हैं। मुश्ताक अली, जतिन बिष्ट, नसीम अख्तर जैसे प्लेयर्स ऐसा कर चुके हैं लेकिन इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) में केवल एक सीजन खेलने के बाद किसी भी प्लेयर को कोच द्वारा नेशनल टीम कैंप के लिए नहीं चुना गया। हालांकि, सुमित राठी दुर्भाग्यशाली रहे क्योंकि कोरोना वायरस की वजह से प्री-वर्ल्ड कप मैच पोस्टपोन हो गया और उसी वजह से ये कैंप भी कैंसिल हो गया।

वह नेशनल टीम के कोच इगोर स्टीमाक से नहीं मिल पाए लेकिन इससे उनके इरादों पर कोई फर्क नहीं पड़ा। गोवा के कैंप में बैठे हुए उन्होंने कहा, "कोरोना की वजह से कैंप का आयोजन नहीं हुआ लेकिन इससे कोई फर्क नहीं पड़ता है। अगर मैं अच्छा प्रदर्शन करुंगा तो फिर दोबारा चुन लिया जाउंगा। भारतीय टीम के लिए नियमित तौर पर खेलना मेरा सपना है।"

यूपी के मुजफ्फरनगर के रहने वाले सुमित राठी ने अपने पिता को बचपन में ही खो दिया था। एक किसान परिवार का होने के बाद भी उन्होंने उम्मीद नहीं छोड़ी। वो सुबह 4:30 बजे उठकर खाली पेट ही 20 किलोमीटर साइकल चलाकर स्कूल जाया करते थे। स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर रोहिन कुमार 5:30 बजे से ट्रेनिंग स्टार्ट कर देते थे। ट्रेनिंग से वापस आकर वो दाल, चावल और सब्जी खाते थे। उनके पास कुछ बीघा खेती भी थी। उनके बड़े भाई वहां पर गन्ने और चुकंदर उगाते थे। कभी-कभी वो अपने भाई की मदद के लिए ट्रैक्टर भी चलाया करते थे। अब भी वो जब घर जाते हैं तो ट्रैक्टर चलाते हैं। उन्होंने कहा, "चैंपियन बनने के बाद जब मैं घर गया तो ट्रैक्टर चलाया और अपने बड़े भाई की मदद की।"

एक रिमोट विलेज से होने के बावजूद वो इतने बड़े फुटबॉलर कैसे बने, इसकी भी एक कहानी है। स्कूल के स्पोर्ट्स टीचर ने उनसे कहा, "अगर तुम्हे बड़ा फुटबॉलर बनना है तो फिर ट्रायल के जरिए चंडीगढ़ फुटबॉल एकेडमी में दाखिले की कोशिश करनी चाहिए।" इसके बाद वह चंडीगढ़ के लिए रवाना हो गए और एकेडमी के लिए सेलेक्ट भी हो गए। वहां पर उस वक्त हरजिंदर सिंह कोच हुआ करते थे।

हरजिंदर सिंह की कोचिंग में सुमित राठी टेक्निकल तौर पर काफी मजबूत हो गए। इसके बाद उन्हें एआईएफएफ यूथ एकेडमी के लिए चुन लिया गया और उनकी जिंदगी बदल गई। हालांकि, अभी तक उन्होंने सीनियर नेशनल टीम के लिए नहीं खेला है लेकिन वो अंडर-14, अंडर-18 टीम के लिए खेल चुके हैं। वो नेपाल में अंडर-18 सैफ कप चैंपियन टीम में भी थे। आई-लीग में इंडियन एरोज के लिए खेलने के बाद दो साल पहले उन्होंने एटीके की यूथ टीम को ज्वॉइन किया।

इसके बाद उन्हें एटीके मोहन बगान टीम के लिए चुन लिया गया। उन्होंने कहा, "जब सीनियर टीम के लिए मेरा चयन हुआ तो उस रात मैं सो नहीं सका था। इसके बाद पिछले सीजन चैंपियन बनने के बाद भी मेरे साथ ऐसा हुआ था। वो दो दिन मेरी जिंदगी के सबसे बेहतरीन पल थे।"

सुमित राठी जल्द ही टीम का अहम हिस्सा बन गए। उन्हें रेगुलर इलेवन में जगह मिलने लगी। उन्हें 14 मुकाबलों में खेलने का मौका मिला जिसमें से एक में वो मैन ऑफ द मैच भी रहे। तीन मैचों में उन्हें बेस्ट प्रॉमिसिंग फुटबॉलर का अवॉर्ड मिला। टीम के कोच एंटोनियो हबास उनका ज्यादातर प्रयोग लेफ्ट बैक में करते थे। उन्होंने कहा, "सर ने मुझसे कहा कि तैयार रहो तुम किसी भी वक्त खेल सकते हो। ओडिशा के खिलाफ मुकाबले में उन्होंने मुझे मौका दिया और इसके बाद मैंने लगभग सारे मुकाबले खेले। वो मेरे लिए भगवान की तरह हैं। अपने फ्लैट में मैं अपने बचपन के कोच की एक तस्वीर रखता हूं और अब एंटोनियो के सम्मान में भी एक तस्वीर रखता हूं।"

इस बार एटीके की टीम में संदेश झिंगन, शुभाषीश बसु और टिरी जैसे स्टार प्लेयर हैं, इसलिए सुमित का स्टार्टिंग इलेवन में जगह बनाना आसान नहीं होगा। सुमित ने इस बारे में कहा कि अगर उन्हें मौका मिला तो वो अपने आपको साबित करेंगे।

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