क्या खालिद जमील अपनी जनरेशन के बेस्ट इंडियन फुटबॉल कोच हैं?
वह पिछले सीजन नॉर्थईस्ट यूनाइटेड को प्लेऑफ तक लेकर गए थे।
इंडियन फुटबॉल में घरेलू कोचेस को अभी भी खिलाड़ियों के बराबर पहचान नहीं मिली है। इंडियन सुपर लीग (आईएसएल) ने कई बेहतरीन खिलाड़ियों को पॉपुलर बनाने में योगदान तो दिया है, लेकिन इस प्लेटफॉर्म के जरिए कोचेस को पहचान मिलना अभी बाकी है। हालांकि, खालिद जमील एक ऐसे कोच हैं, जिन्होंने तमाम बाधाओं को हराते हुए भारतीय फुटबॉल में एक कोच के तौर पर अपनी अलग पहचान बना ली है।
एजवाल एफसी के साथ आई-लीग का खिताब जीतना हो या नॉर्थ ईस्ट यूनाइटेड को आईएसएल के प्लेऑफ्स तक पहुंचाना हो, ऐसे कई मौके आए हैं जब उन्होंने अपनी काबिलियत से लोगों को रूबरू कराया हो। खालिद जमील को उनकी काबिलियत के हिसाब से अभी भारतीय फुटबॉल में इतना सम्मान नहीं मिला है, लेकिन अगर बात की जाए मौजूदा भारतीय कोचेस की तो वो सर्वश्रेष्ठ हैं। आखिर वो इतने खास कैसे हैं, आइए आपको बताते हैं।
जीतने की मानसिकता
खालिद जमील की टीम हमेशा आकर्षक फुटबॉल खेलने के लिए नहीं पहचानी जाती है। बल्कि कभी-कभी तो उनके मुकाबले काफी डिफेंसिव और बोरियत भरे लगते हैं। उनकी टीम ज्यादातर मौकों पर गोल के लिए काउंटर अटैक और सेट पीस पर ही निर्भर रहती हैं। वह खुद अपनी टीम को ज्यादा से ज्यादा डिफेंसिव बनाने की कोशिश करते हैं, ताकि विरोधी टीम गुस्से में आकर अपनी लय से भटक जाए और कोई गलती कर बैठे।
हालांकि उनकी इस रणनीति के पीछे है उनकी जीतने की मानसिकता। दरअसल बाकी कोचेस की तरह जमील को भी हारना पसंद नहीं है, लेकिन उनमें जीतने की भूख शायद बाकी कोचों से ज्यादा है। 44 साल का ये कोच 3 पॉइंट्स के लिए 1-0 की जीत से भी संतुष्ट हो जाता है। एजवाल एफसी उनके नेतृत्व में 2016-17 के आई लीग सीजन की विजेता रही थी और इस दौरान टीम ने 18 में से 11 मुकाबलों में जीत दर्ज की थी। टीम ने 18 मुकाबलों में 24 गोल ही किए थे और ज्यादार मुकाबलों में एक गोल के मार्जिन से जीत हासिल की थी। जो ये बताता है कि उनको जीतने की भूख है, भले ही जीत का अंतर कितना भी कम हो।
पिछले सीजन में नॉर्थ ईस्ट यूनाइटेड ने खालिद जमील के नेतृत्व में 11 में से छह मुकाबलों में जीत दर्ज की थी। एक समय ऐसा था, जब जमील 10 मुकाबलों में अजय रहे थे। हालांकि, उनकी टीम उनकी चालाकी भरी तरकीबों और मैनेजमेंट की उनकी बेहतरीन क्षमताओं के कारण जीत दर्ज करने में कामयाब होती है। जोकि उनको बाकी कोचेस से अलग बना देता है।
चालाकी से मुश्किलों से निपटना
एक और चीज जो खालिद जमील को स्पेशल बनाती है, वो ये है कि उन्हें कभी भी दिग्गज खिलाड़ियों से स्क्वॉड नहीं मिला है। एक मैनेजर के दौर पर उन्होंने अपना सफर शुरू किया मुंबई एफसी के साथ, जो एक ऐसा क्लब था जिसके पास आई लीग के दिग्गज को लेने के लिए आर्थिक ताकत नहीं थी। ऐसे में खालिद जमील ने लोकल लीग और एकेडमीज से खिलाड़ी लिए। एजवाल एफसी के साथ भी उन्होंने ऐसी ही कुछ दिक्कतों का सामना करना पड़ा।
हालांकि इस काम को उन्होंने इतना बखूबी किया कि उनके नेतृत्व में कई शानदार फुटबॉलर्स भारतीय फुटबॉल को मिले। एजवाल में उन्होंने जयेश राणे, आशूतोष मेहता, लालदानमाविया रालते, ब्रेंडन वनलालरेमडिका और लालरामचुलोवा जैसे खिलाड़ियों को मौका दिया पहचान दिलाई। खालिद जमली ने कई ऐसे विदेशी खिलाड़ियों से भी बेहतरीन प्रदर्शन करवाया, जो कि अन्य के मुकाबले इतने पॉपुलर नहीं थे, जैसे- कामो स्टीफन बायी, महमूद अल अमनाह और ईजी किंगस्ली।
पिछले सीजन में उन्होंने नॉर्थईस्ट की तरफ से लालेंगमाविया, मेहता, वीपी सुहैर से भी बेहतरीन प्रदर्शन करवाया। 44 साल के इस कोच की काबिलियत है कि ये चालाकियों से मुश्किलों का सामना करना जातना है। जमील उनको दिए गए खिलाड़ियों से बेहतर प्रदर्शन करवाना भी जानते हैं। ये एक ऐसी काबिलियत है जो शायद बाकी भारतीय कोचों में फिलहाल देखने को नहीं मिलती है।
एक मैनेजर के रोल में आने से पहले खालिद जमील भारत के एक अच्छे खिलाड़ी थी। उन्होंने 11 मुकाबलों में नेशनल टीम का प्रतिनिधित्व किया है। उन्होंने महिंद्रा यूनाइटेड के लिए खेलते हुए आई-लीग (तब इसे नेशनल फुटबॉल लीग के नाम से जाना जाता था) का खिताब भी जीता है। लेकिन एक मेहनती मिडफिल्डर होने के बाद भी वो स्पॉटलाइट में नहीं आ सके। इसकी जगह वो प्रसिद्धि से दूर ही बेहतरीन प्रदर्शन करते रहे। ऐसे ही हेड कोच के तौर पर भी जमील बिना चमक दमक में आए ही बेहतरीन प्रदर्शन जारी रखे हुए हैं।
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